दिल पर तिरे जलवों का असर देख रहे हैं या सिलसिला-ए-शम्स-ओ-क़मर देख रहे हैं ये चाँद सा चेहरा ये महकती हुई ज़ुल्फ़ें हम शाम के दामन में सहर देख रहे हैं यारो इसे फ़ैज़ान-ए-ग़म-ए-इश्क़ ही जानो पलकों पे जो हम सैल-ए-गुहर देख रहे हैं शादाब बहारों का चमन छोड़ के जाना देखा नहीं जाता है मगर देख रहे हैं गुज़रा है कोई शोख़-हसीं दिल की फ़ज़ा से इक चाँद सर-ए-राहगुज़र देख रहे हैं जलवों की फ़ज़ा दीजिए आईना-ए-दिल को इस सम्त हैं हम आप उधर देख रहे हैं 'शब्बीर' ये इक शम्अ जो रौशन है मिज़ा पर हम उन की मोहब्बत का समर देख रहे हैं