दिल पे कैसी ये बिपता पड़ी है रवाँ आँसुओं की झड़ी फिर नज़र उस नज़र से लड़ी आगे आगे है मंज़िल कड़ी ज़िक्र इन आरिज़ों का हसीं बात उन गेसुओं की बड़ी छाँव ज़ुल्फ़ों की फिर ढूँड लो धूप है सख़्त मंज़िल कड़ी उन को ज़ेबा है उन का महल मुझ को प्यारी मिरी झोंपड़ी सोच ले ग़म का सौदा न कर ग़म 'जमाली' है ने'मत बड़ी