दिल पे ख़ंजर वो मार कर ख़ुश हैं और हम हैं कि हार कर ख़ुश हैं ज़िंदगी ने पलट के देखा हमें हम भी उस को पुकार कर ख़ुश हैं दूर जाती हुई तमन्ना का अक्स दिल में उतार कर ख़ुश हैं पहली बारिश के ख़ुशनुमा बादल रंग-ए-गुलशन निखार कर ख़ुश हैं ख़ुश्क पत्ते हवा के काँधों पर चंद लम्हे गुज़ार कर ख़ुश हैं दिल के इस डूबते सफ़ीने से बार-ए-उल्फ़त उतार कर ख़ुश हैं ग़म ने मुद्दत से मार रक्खा था आज हम ग़म को मार कर ख़ुश हैं