धूप में जल कर राह हुआ हूँ By Ghazal << दिल पे ख़ंजर वो मार कर ख़... ज़िंदगी बे-दलील कितनी है >> धूप में जल कर राह हुआ हूँ जब भी पेड़ से मैं टूटा हूँ बेगानों के देश में कोई अपने जैसा ढूँड रहा हूँ दरिया ही में घर है मेरा फिर भी दरिया से डरता हूँ अपने ज़ेहन की तहरीरों को दीमक बन कर चाट रहा हूँ मुझ को ले कर पछताओगे मैं तो इक खोटा सिक्का हूँ Share on: