दिल रो रहा है आँख में लेकिन नमी नहीं जीने को जी रहा हूँ मगर ज़िंदगी नहीं उस को न पा सके जिसे चाहा तमाम उम्र यूँ तो मुझे जहान में कोई कमी नहीं था पास-ए-आबरू-ए-मोहब्बत तमाम उम्र इक बूँद भी पलक से हमारी गिरी नहीं रहमत का क्या जवाब है तेरी वगर्ना याँ वो कौन सी ख़ता है जो हम से हुई नहीं 'हैरत' लबों को सी के गुज़ारी तमाम उम्र इस ज़िंदगी से फिर भी हमारी बनी नहीं