दिल दुखाना तुम्हारी फ़ितरत है चोट खाना हमारी आदत है मुझ को यूँही ख़राब होना था बे-सबब तुम को क्यूँ नदामत है झाँक कर एक बार आँखों में ख़ुद ही पढ़ लो जो दिल की हालत है राह-ए-उल्फ़त में जान दे देना इस से बढ़ कर कोई शहादत है तेरी फ़ुर्क़त हो या तिरी क़ुर्बत एक दोज़ख़ है एक जन्नत है तुम ने देखा है ऐसे जल्वों को किस लिए मुझ से फिर शिकायत है इस भरोसे गुनाह करता हूँ बख़्श देना तुम्हारी फ़ितरत है सू-ए-मय-ख़ाना उठ चले हैं क़दम जैसे ये भी कोई इबादत है ज़िंदगी को सँभाल कर रखना एक बे-दर्द की अमानत है दर्द ही दर्द जिस के शे'रों में और है कौन सिर्फ़ 'हैरत' है