दिल-रुबा तुझ सा दूसरा न हुआ ऐ हसीं तू मगर ख़ुदा न हुआ जो मोहब्बत में मुब्तला न हुआ दर्द-ए-दिल से वो आश्ना न हुआ मेरी मिट्टी वहाँ पहुँच जाती तुझ से इतना भी ऐ सबा न हुआ रोज़ आते हैं वो अयादत को मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ तू हमेशा जुदा रहा मुझ से तेरा अरमाँ कभी जुदा न हुआ अपनी रुस्वाई उन की बदनामी इस मोहब्बत में हाए क्या न हुआ बेवफ़ाई की हद है ये 'मुज़्तर' रह के पहलू में दिल मिरा न हुआ