दिल सलामत अगर अपना है तो दिलदार बहुत है ये वो जिंस कि जिस के हैं ख़रीदार बहुत एक मैं ही तिरे कूचे में नहीं हूँ बेताब सर पटकते हैं ख़बर ले पस-ए-दीवार बहुत देखिए किस के लगे हाथ तिरा गौहर-ए-वस्ल इस तमन्ना में तो फिरते हैं तलबगार बहुत कहीं नर्गिस को मगर तू ने दिखाईं आँखें नहीं बचते नज़र आते हैं ये बीमार बहुत क्या करूँ किस से कहूँ हाल किधर को जाऊँ तंग आया हूँ तिरे हाथ से दिलदार बहुत अपने आशिक़ से किया पूछो तो कैसे ये सुलूक और भी शहर में हैं तुझ से तरहदार बहुत तिरे आते तो कोई फूल न होगा सरसब्ज़ क्या हुआ बाग़ में गो फूले थे गुलज़ार बहुत एक दिन तुझ को दिखाऊँगा मैं इन ख़ूबाँ को दावा-ए-यूसुफ़ी करते तो हैं इज़हार बहुत जुर्म-ए-बोसा पे जो 'बेदार' को मारा मारा न करो जाने दो इस बात पे तकरार बहुत