दिल से हर दम हमें आवाज़ लगा आती है बंद कानों को भी गिर्ये की सदा आती है दिल से है आँख तक आई असर-ए-गर्मी-ए-शौक़ अश्क-ए-हसरत से निगह आबला-पा आती है गुल हुआ कोई चराग़-ए-सहरी ओ बुलबुल हाथ मलती हुई पत्तों से सबा आती है तेरी आँखों का हूँ बीमार मैं ओ ईसा-दम न दुआ आती है मुझ को न दवा आती है आइना साफ़ सिकंदर को दिखाया तू ने ख़ूब ऐ ख़िज़्र तुझे राह बना आती है छू लिया धोके से दामान-ए-सबा तू ने तो क्या ग़ुंचा-ए-गुल कहीं मुट्ठी में हवा आती है जिस क़दर वस्ल-ए-बुताँ का तुम्हें रहता है फ़िराक़ ऐ 'नसीम' इतनी कभी याद-ए-ख़ुदा आती है