दिल से ख़याल-ए-मर्ग मिटाते तिरे लिए ख़ुद को किसी तरह तो बचाते तिरे लिए बादल से लेते पानी धनक से तमाम रंग बारिश में हल्की धूप बनाते तिरे लिए चलते किसी भी सम्त पहुँचते तिरे क़रीं रस्ते से दिल का रिश्ता निभाते तिरे लिए लिखते घने बनों के शजर पर बस एक नाम दुनिया में सिर्फ़ पेड़ लगाते तिरे लिए 'रिज़वी' सियाह-मस्त न होते तो मेरे दोस्त दिल जैसा इक चराग़ जलाते तिरे लिए