दिल सी नायाब चीज़ खो बैठे कैसी दौलत से हाथ धो बैठे अहद-ए-माज़ी का ज़िक्र क्या हमदम अहद-ए-माज़ी को कब के रो बैठे हम को अब ग़म नहीं जुदाई का अश्क-ए-ग़म जाम में समो बैठे वा'ज़ करने को आए थे वाइ'ज़ मय से दामन मगर भिगो बैठे क्या सबब है 'नरेश'-जी आख़िर क्यों जुदा आज सब से हो बैठे