दिल से तेरी याद का इक पल जुदा होता नहीं वर्ना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं मैं ही मैं होती हूँ अपने आलम-ए-इम्कान में तू ही तू होता है कोई दूसरा होता नहीं सब्र ही करना है उस का शहर है और शहर में वाक़िआ' होता नहीं या हादिसा होता नहीं ग़ैर तो फिर ग़ैर है क्या वक़्त को इल्ज़ाम दूँ जब मिरा होते हुए भी दिल मिरा होता नहीं ज़ब्त किस का सब्र किस का किस का दिल किस की वफ़ा इश्क़ में कोई किसी का आश्ना होता नहीं जिस की ख़ातिर दुश्मनी 'तसनीम' दुनिया से हुई देखिए वो भी मिरा होता है या होता नहीं