दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो गर तू मिले ख़ुदा की मुझे जुस्तुजू न हो आँखें तुझे न पाएँ तो कुछ भी न पा सकें गर तू न हो तो कुछ भी मिरे रू-ब-रू न हो चुभती हुई कहे है ज़बाँ से हर एक बात तू ख़ूब है जो तल्ख़ तिरी गुफ़्तुगू न हो उठती नहीं निगाह भी ऐ दिल तिरे सबब किस से मुझे शिकस्त हो दुश्मन जो तू न हो महबूब गर मिले तो मिले वो नसीब से लुत्फ़-ओ-करम न हो तो सितम की भी ख़ू न हो हर ख़ूब-रू हो शोख़-अदा और वफ़ा-शिआ'र किस काम का है फूल अगर रंग-ओ-बू न हो इज़्ज़त भी एक चीज़ है दुनिया में ऐ 'फ़लक' उस घर न जा जहाँ कि तिरी आबरू न हो