दिल शगुफ़्ता है के फिर कोई ख़ता होने को है जैसे अगले ही क़दम पर हादिसा होने को है जाने क्या क्या हो गया है हो रहा है जाने क्या आने वाले वक़्त में अब जाने क्या होने को है वो गया तो लौट कर साँसें न आईं जिस्म में यूँ लगा कि ज़िंदगी से फ़ासला होने को है डाल दी कश्ती भँवर में बस इसी उम्मीद पर एक तिनके का मुझे भी आसरा होने को है झुक गया है आसमाँ उड़ने लगी है ये ज़मीं लग रहा सावन में अब के कुछ नया होने को है जिस ने मेरे पाँव को ज़ख़्मी किया था एक दिन रास्ते का अब वो पत्थर देवता होने को है फिर सुहानी वादियों से इश्क़ ने दी है सदा लग रहा है रतजगों का सिलसिला होने को है ज़िंदगी की उलझनें काग़ज़ पे लिक्खी थीं कभी आ रही है ये ख़बर वो फ़ल्सफ़ा होने को है मिल गया वो इक गुहर जो अपने मन की सीप में ऐसा लगता है कि ख़ुद से राब्ता होने को है छू लिया आकाश ने झुक कर ज़मीं के जिस्म को मुख़्तसर सा एक पल अह्द-ए-वफ़ा होने को है हम तो ऐसी फ़िक्र से अब हो चुके हैं बे-नियाज़ होने दो जो 'साहिबा' अच्छा बुरा होने को है