दिल सुलगता है न अब याद कोई आती है गर्द सी है जो ख़यालों पे जमी जाती है दूर पेड़ों से उलझती है हर आँधी लेकिन ज़र्द पत्तों को मिरे घर में उठा लाती है करने आती है मुनव्वर दिल हर गोशा-ए-दर्द चाँदनी शहर की गलियों में भटक जाती है दिल का बर्बाद जहाँ जब भी कभी देखता हूँ अपने नाकाम इरादों पे हँसी आती है वो है किस देस में किस शहर में हूँ मैं 'जमशेद' बस इसी सोच में हर रात गुज़र जाती है