काश होता मज़ा कहानी में By Ghazal << दिल सुलगता है न अब याद को... नए मौसम को क्या होने लगा ... >> काश होता मज़ा कहानी में दिल मिरा बुझ गया जवानी में उन की उल्फ़त में ये मिला हम को ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में आओ दिखलाएँ एक अनहोनी आग लगती है कैसे पानी में तुम रहे पाक-साफ़ दिल हर दम मैं रहा सिर्फ़ बद-गुमानी में Share on: