दिल तलबगार सही हश्र-ब-दामाँ क्यूँ है नाला-ज़न शो'ला-ब-कफ़ शौक़-ए-फ़रावाँ क्यूँ है महफ़िल-ए-साज़-ओ-तरब मतला-ए-वीराँ क्यूँ है शेवा-ए-सब्र-ओ-सुकूँ दिल से गुरेज़ाँ क्यूँ है खींच लाया था जो उस दिल को तिरी महफ़िल में वही अंदाज़-ए-नज़र आज पशेमाँ क्यूँ है सुरंगों राह में हर-गाम हुआ जाता है मुज़्महिल ख़ू-ए-सफ़र दर्द पशेमाँ क्यूँ है तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन कश्मकश-ए-ज़ेहन-ओ-वजूद एक हस्ती के लिए ये सर-ओ-सामाँ क्यूँ है दश्त-पैमाई में भी वहशत-ए-जाँ इतनी न थी तिश्नगी साहिल-ए-दरिया पे हिरासाँ क्यूँ है