ज़ुल्फ़ों की छाँव छाँव रुख़-ए-ला-जवाब था वो बे-नक़ाब होते हुए बा-नक़ाब था महव-ए-ख़िराम-ए-नाज़ अदाएँ शबाब था वो दिन हवा हुए कि पसीना गुलाब था जल्वा-नुमाइयों में हुई ग़र्क़-ए-तिश्नगी अक्स-ए-जमाल-ए-यार ब-जाम-ए-शराब था अस्प-ए-रवान-ए-अहद-ए-जवानी की मंज़िलें वो मेरा हम-रिकाब में पा-ब-रिकाब था मुझ से ग़म-ए-हयात की कैफ़िय्यतें न पूछ शबनम की तरह अश्क तबस्सुम-मआ'ब था मैं जिस के ख़्वाब देख रहा था मकान में वो अपने बेड-रूम में ख़ुद महव-ए-ख़्वाब था नाकामियों की नज़र न 'आसी' हुआ कभी फ़नकार अपने फ़न में बहुत कामयाब था