दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए ये फ़ित्ना कहीं ख़्वाब से बेदार न हो जाए मुद्दत से यही पर्दा यही पर्दा-दरी है हो कोई तो पर्दे से नुमूदार न हो जाए मुझ से मिरा अफ़्साना-ए-माज़ी न सुनो तुम अफ़्साना नया फिर कोई तय्यार न हो जाए ऐ मस्ती-ए-उल्फ़त सबक़-ए-कुफ़्र दिए जा जब तक मुझे हर चीज़ से इंकार न हो जाए होना है जो हस्ती को मिरी ख़ाक ही 'सीमाब' पहले ही से क्यूँ ख़ाक-ए-दर-ए-यार न हो जाए