दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर देख अब वो भी उतर आया अदाकारी पर मैं ने दुश्मन को जगाया तो बहुत था लेकिन एहतिजाजन नहीं जागा मिरी बेदारी पर आदमी आदमी को खाए चला जाता है कुछ तो तहक़ीक़ करो इस नई बीमारी पर कभी इस जुर्म पे सर काट दिए जाते थे अब तो इनआ'म दिया जाता है ग़द्दारी पर तेरी क़ुर्बत का नशा टूट रहा है मुझ में इस क़दर सहल न हो तू मिरी दुश्वारी पर मुझ में यूँ ताज़ा मुलाक़ात के मौसम जागे आइना हँसने लगा है मिरी तय्यारी पर कोई देखे भरे बाज़ार की वीरानी को कुछ न कुछ मुफ़्त है हर शय की ख़रीदारी पर बस यही वक़्त है सच मुँह से निकल जाने दो लोग उतर आए हैं ज़ालिम की तरफ़-दारी पर