मैं ने कहा कि तजज़िया-ए-जिस्म-ओ-जाँ करो उस ने कहा ये बात सुपुर्द-ए-बुताँ करो मैं ने कहा कि बहार-ए-अबद का कोई सुराग़ उस ने कहा तआक़ुब-ए-लाला-ए-रुख़ाँ करो मैं ने कहा कि सर्फ़-ए-दिल-ए-राएगाँ है क्या उस ने कहा आरज़ू-ए-राएगाँ करो मैं ने कहा कि इश्क़ में भी अब मज़ा नहीं उस ने कहा कि अज़-सर-ए-नौ इम्तिहाँ करो मैं ने कहा कि और कोई पंद-ए-ख़ुश-गवार उस ने कहा कि ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ करो मैं ने कहा हम से ज़माना है सर-गराँ उस ने कहा कि और इसे सर-गराँ करो मैं ने कहा कि ज़ोहद सरासर फ़रेब है उस ने कहा ये बात यहाँ कम बयाँ करो मैं ने कहा कि हद्द-ए-अदब में नहीं 'ज़फ़र' उस ने कहा न बंद किसी की ज़बाँ करो