दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी शराब अगर नहीं ख़ून-ए-दिल-ए-ख़राब तू पी बहे जो धार दम-ए-तेग़ से न जा प्यासा सबील-ए-नज़्र-ए-शहीदाँ यही है आब तू पी ब-रंग-ए-शबनम-ए-गुल दाग़-ए-इश्क़ से दिल पर जो गुल न खाए तो बे-ख़ुद न हो गुलाब तू पी न आफ़्ताब-ए-क़यामत से डर मय-ए-गुल-रंग करे चमन में अगर सैर माहताब तू पी वला ये जाम-ए-मय-ए-नाब बर्क़-ओ-बाराँ में जो जाम-ए-जम से है माना ब-आब-ओ-ताब तू पी शराब जौहर-ए-आतिश है अक़्ल है सीमाब ये ले उड़े है अगर उस की लाए ताब तू पी रसीद-ए-क़तरा ब-दरिया है मय से भर भर के सुराही-ए-गुहर-ओ-कासा-ए-हबाब तू पी नक़ाब मुँह से उठा आफ़्ताब अब्र में है मियाँ पियाला जो पीना है बे-हिजाब तू पी है अब्र-ए-साया-ए-रहमत गुनाहगारों पर पियाला होए अगर रशहा-ए-सहाब तू पी जिगर जले तो न गिरने दे आँख से आँसू ब-अज़-शराब ये ख़ूँ-नाबा-ए-कबाब तू पी रहेगा मस्त तह-ए-ख़ाक दौर-ए-महशर तक 'मुहिब' मन-ए-मय-ए-इश्क़-ए-अबू-तुराब तू पी