दिलासा दे के बहलाया है दिल को बड़ी मुश्किल से समझाया है दिल को तिरे ग़म ने जो चमकाया है दिल को मिसाल-ए-आइना पाया है दिल को तिरी उल्फ़त में ऐ जान-ए-तमन्ना ज़माने भर से टकराया है दिल को ख़िरद से बे-तअल्लुक़ हो गए जब जुनूँ की राह में पाया है दिल को ज़हे-क़िस्मत कि हक़-गोई का जज़्बा मक़ाम-ए-दार तक लाया है दिल को किसी ने बज़्म में नीची नज़र से सलाम-ए-शौक़ पहुँचाया है दिल को वफ़ा वालों ने ग़म की लाज रक्खी वफ़ा वालों ने अपनाया है दिल को किसी ने फेर कर दिल से निगाहें न पूछो कितना तड़पाया है दिल को हमेशा रहरवान-ए-आगही ने चराग़-ए-रहगुज़र पाया है दिल को कभी जज़्बात का पैकर बनाया कभी बातों में उलझाया है दिल को 'निगार' उस शोख़ ने अपनी नज़र से ख़ुदी का राज़ समझाया है दिल को