दिलबर-ए-बे-बाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना शोख़ सितम-नाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना दस्त में ख़ंजर पकड़ निकला है वो ग़ुस्सा-वर हाथ के चालाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना अबतर-ए-ख़ूँ-रेज़ है क़त्ल उपर तेज़ है ज़ालिम-ओ-सफ़्फ़ाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना उस की जफ़ा सीं तमाम जग में पड़ी धूम-धाम हम जम-ओ-ज़ह्हाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना मुझ से रक़ीब-ओ-लईं जीव में रखता है कीं उस सग-ए-नापाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना बुल-हवस-ए-ज़िश्त-रू करता है नित गुफ़्तुगू मर्द बे-इदराक सूँ ख़ूब नहीं बोलना मिस्रा-ए-मतला' सदा विर्द करे 'मुबतला' दिलबर-ए-बे-बाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना