दिल-भीतर बरसात हुई है यूँ भी गुज़र औक़ात हुई है बंद दरीचे सूनी गलियाँ लौट चलो घर रात हुई है शर्त लगा कर जब भी खेले खेल में हम को मात हुई है बीत गईं लो हिज्र की घड़ियाँ ख़त्म शब-ए-ज़ुल्मात हुई है इस कूचे आ निकले जब भी साथ में इक बारात हुई है जिस ने भी सच बोला बढ़ कर ख़िल्क़त उस के साथ हुई है रूठे रूठे क्यूँ रहते हो कुछ तो कहो क्या बात हुई है इतना बड़ा इल्ज़ाम है हम पर इतनी ज़रा सी बात हुई है हिफ़्ज़ बयाज़-ए-मीर है जिस को उस को अता सौग़ात हुई है क़ुफ़्ल-ए-तिलिस्म-ए-हर्फ़ खुला है शरह-ए-किताब-ए-ज़ात हुई है वक़्त-ए-नुज़ूल-ए-शे'र है 'ख़ुसरव' सुब्ह गई अब रात हुई है