दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए दिल ले के छुप गए तुम्हें ऐसा न चाहिए दिल काम का नहीं तो न लो जान नज़्र है इतनी ज़रा सी बात पे झगड़ा न चाहिए ज़ाहिद तो बख़्शे जाएँ गुनहगार मुँह तकें ऐ रहमत-ए-ख़ुदा तुझे ऐसा न चाहिए ऐ दिल सदा उसी की तरफ़ सर झुका रहे का'बा वही है ग़ैर का सज्दा न चाहिए का'बा समझ के दैर में 'मुज़्तर' बसर करो वो हर जगह है अब कहीं जाना न चाहिए