दिल-ए-बे-क़रार चला तो था गिला-ए-हयात लिए हुए ग़म-ए-इश्क़ रूह पे छा गया ग़म-ए-काएनात लिए हुए कभी बे-इरादा छलक गई थी किसी के ज़िक्र पे चश्म-ए-नम वो हैं मुझ से आज भी बद-गुमाँ वही एक बात लिए हुए मिरे दिल के साथ ही छीन ले मिरी ख़ुद-शनास निगाह भी मैं तिरे क़रीब न आऊँगा ये तवहहुमात लिए हुए कभी तुझ पे अपना गुमान है कभी ख़ुद पे तेरा गुमान है मिरे किर्दगार कहाँ रहूँ ये तसव्वुरात लिए हुए शब-ए-इंतिज़ार के ब'अद फिर न हुई तुलू कोई सहर मिरी उम्र सारी गुज़र गई यही एक रात लिए हुए तुझे नाज़-ए-ज़ब्त बजा सही मगर ऐ 'फ़रीदी'-ए-सादा-दिल कोई चश्म-ए-शोला-मिज़ाज है तिरे दिल की बात लिए हुए