दिल-ए-ग़रीब कहाँ पाएगा निशाँ अपना लुटा के शहर-ए-निगाराँ में कारवाँ अपना हरीम-ए-नाज़ से कर्ब-ओ-अलम के ज़िंदाँ तक कहाँ कहाँ न हुआ ख़ून राएगाँ अपना ख़ुदा का शुक्र बजा लाओ सोख़्ता जानो ज़मीन दोस्त से कम-तर है आसमाँ अपना दिल-ओ-निगाह के सज्दों की बात कर वाइज़ जबीन-ए-शौक़ को हासिल है आस्ताँ अपना कुछ और ज़ब्त से ले काम ऐ दिल-ए-नादाँ मिला हुआ है रक़ीबों से राज़-दाँ अपना गिला भी उन के सितम का न कर सके 'शाहिद' हज़ार बार लिया हम ने इम्तिहाँ अपना