दिल-ए-गिरफ़्ता के सब पेच-ओ-ताब खोल के देख हवा का ज़ोर मुहीत-ए-हुबाब खोल के देख मिरे लहू को नुमाइश-गह-ए-वफ़ा से उठा है जम्अ ओ ख़र्च बहुत ये हिसाब खोल के देख ये किस के ज़ुल्म से हर शय है मिस्ल-ए-संग ख़मोश ऐ नक़्श-गर दर-ए-शहर-ए-ख़राब खोल के देख कहीं तो दश्त में ठहरेगी मौज-ए-आब-ए-गुरेज़ रवाँ हुआ है तो राज़-ए-सराब खोल के देख धड़कते दिल से न मौजों की रज़्म-गह में उतर ख़त-ए-सफ़र को कफ़-ए-दस्त-ए-आब खोल के देख हैं कब से तिश्ना-ए-मअ'नी मिरे हुरूफ़-ए-बदन फ़राग़ हो तो कभी ये किताब खोल के देख ज़रा सुराग़ लगा मेरे रंग-ए-ख़स्ता का ग़मों की धूप में बंद-ए-नक़ाब खोल के देख गुलों को किस लिए डसती हैं चाँदनी रातें कहाँ है ज़हर रग-ए-माहताब खोल के देख मज़ा तो जब है कि गुलशन में जश्न-ए-शोला हो भरी बहार में दाग़-ए-गुलाब खोल के देख कनार-ए-दश्त-ए-बला कौन है मकीं 'शाहीं' ख़मोश सूनी हवेली का बाब खोल के देख