दिल-ए-मुज़्तर को समझा लूँ बहुत है मैं ख़ुद से अपना घर छालूँ बहुत है मैं अपनी ज़िंदगी-ए-बेवफ़ा को वफ़ा के जाम में ढालूँ बहुत है भिगो कर आँसुओं से अपना चेहरा सफ़र की गर्द धो डालूँ बहुत है सुकूत-ए-अंजुमन टूटे न टूटे ब-शौक़-ए-ज़मज़मा गा लूँ बहुत है नवाह-ए-ज़िंदगी में इक ज़रा सा फ़रेब-ए-दोस्ती खा लूँ बहुत है कोई भूला सबक़ पारीना क़िस्सा मैं दिल ही दिल में दोहरा लूँ बहुत है न जाए राएगाँ ज़ौक़-ए-तजस्सुस मैं अपने आप को पा लूँ बहुत है जो संग-ए-मील रहज़न के लिए है वो संग-ए-राह उठवा लूँ बहुत है 'सबा' दीवार-ए-ज़िंदान-ए-बला से मैं अपने सर को टकरा लूँ बहुत है