सुनाएँ हम कोई क़िस्सा हमारी दास्ताँ का मुझे क़िस्सा नहीं बनना तुम्हारी दास्ताँ का महज़ दो नाम हों उस से ज़ियादा कुछ नहीं हो मोहब्बत नाम रक्खें हम हमारी दास्ताँ का ज़माने को लगा कि ख़त्म क़िस्सा हो गया है मगर इक मरहला था वो भी अपनी दास्ताँ का क़बीले से झरोका देखना मुमकिन नहीं था नया मौज़ूअ' मिला है इक पुरानी दास्ताँ का सरासर वो ही लिखना जो जिया है साथ हम ने बदलने से बदल जाए न मा'नी दास्ताँ का