दिल-ए-मुज़्तर मुझे इक बात बता सकता है

दिल-ए-मुज़्तर मुझे इक बात बता सकता है
तू किसी तौर मुझे छोड़ के जा सकता है

ये तिरी भूल है मैं तेरे सबब ज़िंदा हूँ
मुझ सा ज़िद्दी तो बदन तोड़ के जा सकता है

जिस ने इस ख़ाक के इंसान को इज़्ज़त दी है
वही इस ख़ाक को मिट्टी में मिला सकता है

तो मिरे साथ तो है फिर भी मिरे साथ नहीं
इस से बढ़ कर भी मुझे कोई सता सकता है

मिरे मौला मिरी तन्हाई मिटाने के लिए
मेरे जैसा ही तू इक और बना सकता है

मुझे मा'लूम है मिलना नहीं मुमकिन लेकिन
तू किसी रात मिरे ख़्वाब में आ सकता है

मिरी उल्फ़त का सर-ए-बज़्म तमाशा कर के
आप अपने को तू इतना भी गिरा सकता है

ज़ख़्म-ए-उल्फ़त से नवाज़ा तू मिरा मोहसिन है
तू मिरी ज़ात पे एहसान जता सकता है

अपने दिलबर के बुलावे पे बहाने कैसे
वो तो महबूब है जब चाहे बुला सकता है

वो जो रोते को हँसाने का हुनर रखते हैं
गर वो रोएँ तो उन्हें कौन हँसा सकता है

अपनी मर्ज़ी से मुझे छोड़ के जाने वाला
मिरी यादों को कभी दिल से मिटा सकता है

मुझ को जीने से मोहब्बत न मोहब्बत की हवस
मेरी तरह कोई जज़्बों को सुला सकता है

सियह-बख़्ती में तिरी ज़ात भी शामिल है 'अली'
तू किसी तौर उसे दूर हटा सकता है


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