दिल-ए-नादाँ को हो क़रार नहीं By Ghazal << अर्श से रुख़ जानिब-ए-दुनि... एक वो ही शख़्स मुझ को अब ... >> दिल-ए-नादाँ को हो क़रार नहीं पर मुझे तेरा इंतिज़ार नहीं भर गए ज़ख़्म सिल गया दामन आँख भी देखो अश्क-बार नहीं किस जगह जाएँ किस से बात करें अपना कोई भी ग़म-गुसार नहीं इतने पाए हैं दोस्ती में फ़रेब अब किसी का भी ए'तिबार नहीं Share on: