दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर ज़ब्ह करते हो ऊस कूँ बे-तकबीर नक़्श-ए-दीवार सेहन-ए-गुलशन है जिस ने देखा है यार की तस्वीर आशिक़ों कूँ नहीं है रुस्वाई मुसहफ़-ए-इश्क़ की है ये तफ़्सीर गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार बेजा नहीं दिल के लेने की है उसे तदबीर बुल-हवस कब तलक रहे आज़ाद खोल सय्याद ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर जानती है वो ज़ुल्फ़-ए-उक़्दा-कुशा मेरे आशुफ़्ता ख़्वाब की ताबीर शब-ए-हिज्राँ में ऐ 'सिराज' मुझे अश्क है शम्अ और पलक गुल-गीर