दिल-ए-नादाँ पे शिकायत का गुमाँ क्या होगा चंद अश्कों से जफ़ाओं का बयाँ क्या होगा शब के भटके हुए राही को ख़बर दे कोई सुब्ह-ए-रंगीं की बहारों का निशाँ क्या होगा नाला-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार से बे-ज़ारी क्या गोश-ए-सय्याद पे अब ये भी गराँ क्या होगा सच के कहने से अगर जी का ज़ियाँ होता है सच बहर-हाल है सच मोहर-ए-दहाँ क्या होगा चुप रहें हम तो सर-ए-दार पुकारेगा लहू चंद ही रोज़ में आईन-ए-जहाँ क्या होगा ज़र्रे ज़र्रे पे कोई फूँकेगा अफ़्सून-ए-बहार माना-ए-जोश-ए-नुमू जौर-ए-ख़िज़ाँ क्या होगा चश्म-ए-नर्गिस को हवस है कि चमन में देखे आतिश-ए-गुल के भड़कने का समाँ क्या होगा अब तो हम शहर-ए-निगाराँ से चले आए हैं बाइ'स-ए-वहशत-ए-दिल हुस्न-ए-बुताँ क्या होगा