दिल-फ़सुर्दा ये किसी का नहीं देखा जाता आँख में अश्क का दरिया नहीं देखा जाता ज़िंदगी तेरा यक़ीं कैसे करूँ मैं आख़िर तुझ से इक शख़्स भी हँसता नहीं देखा जाता बेवफ़ाई तो चलो ठीक है लेकिन तेरे सर तले ग़ैर का शाना नहीं देखा जाता तुझ पे इल्ज़ाम लगा सकते हैं लेकिन हम से तेरा दामन कभी मैला नहीं देखा जाता माँग बैठा वो खिलौना तो मैं दिल दे आया तिफ़्ल तो तिफ़्ल है रोता नहीं देखा जाता चंद ऐसे भी मसीहा हैं मेरे ख़ित्ते में जिन से बीमार को अच्छा नहीं देखा जाता मैं ग़म-ए-इश्क़ से आज़ाद हुआ चाहता हूँ अब तमन्नाओं का लाशा नहीं देखा जाता ज़ख़्म पर ज़ख़्म हमें जिस ने दिए ऐ 'साहिल' उस से अब दर्द हमारा नहीं देखा जाता