इसी बाज़ार तक बस रौशनी है फिर इस के बा'द इक अंधी गली है हर इक आवाज़ में है अज्नबिय्यत हर इक चेहरे पे इक बे-चेहरगी है यहाँ रस्मन है सब की ख़ुश-लिबासी नज़र से बे-लिबासी झाँकती है है घर में ख़ामुशी का एक जंगल इसी जंगल में काला नाग भी है अजब दुर्गंध है वातावरण में किसी तालाब में मछली मरी है हमें आकाश पर जाना था लेकिन हमारे पाँव में रस्सी बंधी है ज़रा लहजे को तुम शाइस्ता कर लो तुम्हारे पीछे इक लड़की खड़ी है वो चेहरा जो कभी देखा नहीं था वो चेहरा याद मुझ को आज भी है अभी हैं ख़्वाब गीले बादलों के अभी बारिश में लड़की भीगती है