दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं मुँह बनाता है बुरा क्यूँ वक़्त-ए-वाज़ आज वाइ'ज़ तू ने पी अच्छी नहीं ज़ुल्फ़-ए-यार इतना न रख दिल से लगाओ दोस्ती नादान की अच्छी नहीं बुत-कदे से मय-कदा अच्छा मिरा बे-ख़ुदी अच्छी ख़ुदी अच्छी नहीं मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं इस क़दर खिंचती है क्यूँ ऐ ज़ुल्फ़-ए-यार ले के दिल इतनी कजी अच्छी नहीं आएँ मेरी बज़्म-ए-मातम में वो क्या हाथ में मेंहदी रची अच्छी नहीं शैख़ को दे दो मय-ए-बे-रंग-ओ-बू उस की क़िस्मत से खींची अच्छी नहीं इक हसीं हो दिल के बहलाने को रोज़ रोज़ की ये दिल-लगी अच्छी नहीं ज़र्रा ज़र्रा आफ़्ताब-ए-हश्र है हश्र अच्छा वो गली अच्छी नहीं अहल-ए-महशर से न उलझो तुम 'रियाज़' हश्र में दीवानगी अच्छी नहीं