कभी ख़्वाहिश न हुई अंजुमन-आराई की कोई करता है हिफ़ाज़त मिरी तन्हाई की मैं तो गुम अपने नशे में था मुझे क्या मालूम किस ने मुँह फेर लिया किस ने पज़ीराई की वो तग़ाफ़ुल भी न था और तवज्जोह भी न थी कभी टोका न कभी हौसला-अफ़ज़ाई की हिचकियाँ शाम-ए-शफ़क़-ताब की थमती ही न थीं अब भी रुक रुक के सदा आती है शहनाई की हम से पहले भी सुखनवर हुए कैसे कैसे हम ने भी थोड़ी बहुत क़ाफ़िया-पैमाई की