दिलों के बीच बदन की फ़सील उठा दी जाए सिमट रही है मसाफ़त ज़रा बढ़ा दी जाए हमारी सम्त कभी ज़हमत-ए-सफ़र तो करो तुम्हारी राह में भी कहकशाँ बिछा दी जाए बनी तो होगी कहीं सरहद-ए-गराँ-गोशी तुम्हीं बताओ कहाँ से तुम्हें सदा दी जाए किसी के काम तो आए ख़ुलूस की ख़ुशबू मिज़ाज में न सही जिस्म में बसा दी जाए ये सोचते नहीं क्यूँ फ़ासले तवील हुए ये पूछते हैं कि रफ़्तार क्यूँ बढ़ा दी जाए ये महवियत न कहीं तुझ से फेर दे सब को तिरी तरफ़ से तवज्जोह ज़रा हटा दी जाए तकल्लुफ़ात की पुर-पेच वादियाँ कब तक ब-राह-ए-रास्त उन्हें दावत-ए-वफ़ा दी जाए सुनी हैं हम ने बहुत तीरगी पे तक़रीरें मिले न लफ़्ज़ अगर रौशनी बुझा दी जाए गुज़रने वाली हवा ख़ुद पता लगा लेगी ज़रा सी आग किसी राख में दबा दी जाए