कभी हुदूद से बाहर कभी वो हद में रहा मिरा यक़ीन हमेशा गुमाँ की ज़द में रहा है बहर-ओ-बर में रवाँ हाल मेरा सय्यारा गहे वो बुर्ज-ए-समक में गहे असद में रहा उसी के दम से रही ज़िंदगी की रंगीनी जुनूँ का कैफ़ जो पैमाना-ए-ख़िरद में रहा उसे नसीब कहाँ लज़्ज़त-ए-सबील-ए-सफ़र वो कारवाँ जो निगहबानी-ए-रसद में रहा उसे कहाँ से मिलेगी तिरे मकाँ में अमाँ तमाम-उम्र जौ पैकार-ए-नेक-ओ-बद में रहा 'रज़ा' जो गुज़रा तो कुछ रौशनी भी छोड़ गया वो इक शरर था जो अंदेशा-ए-अबद में रहा