दिलों में जल्वा-फ़गन याद-ए-रफ़्तगाँ है अभी चराग़ बुझ गए सारे मगर धुआँ है अभी ख़याल-ए-यार में पूछो न दिल कहाँ है अभी ख़याल तक नहीं पहुँचे जहाँ वहाँ है अभी जला के ख़ाक किया बर्क़ ने हक़ीक़त है मगर चमन में मिरी ख़ाक-ए-आशियाँ है अभी ख़ुशी की बात न कर इशरतों का ज़िक्र न छेड़ ग़म-ए-हयात मिरी ज़ेब-ए-दास्ताँ है अभी कहो तो ख़ुल्द बना दूँ मैं अपने दामन पर कि फ़र्त-ए-ग़म से रवाँ चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ है अभी रुकी रुकी हुई चलती है मेरी नब्ज़-ए-हयात कहाँ है रश्क-ए-मसीहा कि तन में जाँ है अभी ख़रीद ले किसी यूसुफ़ को मेरे दिल को न देख ये जिंस हुस्न के बाज़ार में गराँ है अभी चमन से हाथ उठा लूँ मैं क्यों चमन वालो कि शाख़ शाख़ पे मेरा ही आशियाँ है अभी कहाँ है मंज़िल-ए-हस्ती किसे ख़बर 'अहसन' ये जानते हैं फ़क़त कारवाँ रवाँ है अभी