दोस्ती कर न दुश्मनी के लिए आदमिय्यत है आदमी के लिए ये मुसावात कैसी गुलशन में लोग तरसें कली कली के लिए ग़ाफ़िलो जानते हो रम्ज़-ए-हयात मौत आती है ज़िंदगी के लिए मस्त आँखों से देख ऐ साक़ी कुछ तो थोड़ी सी बे-ख़ुदी के लिए रंग-ए-महफ़िल बदल न जाए कहीं जल्वे होते नहीं सभी के लिए अपनी आँखों से कुछ अता कर दो असर-ए-सेहर-ए-सामरी के लिए अज़्मत-ए-आदमी न पूछ 'अहसन' का'बे झुकते हैं बंदगी के लिए