दिलों में मिदहत-ए-रहमान हम भी रखते हैं

दिलों में मिदहत-ए-रहमान हम भी रखते हैं
वक़ार-ए-अज़्मत-ए-क़ुरआन हम भी रखते हैं

शुऊर-ओ-फ़िक्र तो हर आन हम भी रखते हैं
बुरे-भले की तो पहचान हम भी रखते हैं

कहो न मुर्दा हमें जान हम भी रखते हैं
रगों में ख़ून का दौरान हम भी रखते हैं

हमें बनाया गया है सदाक़तों का अमीं
दिलों में जज़्बा-ए-ईमान हम भी रखते हैं

तुम अपने ज़ुल्म को रोको न हम से टकराओ
वगर्ना क़ुव्वत-ए-सुल्तान हम भी रखते हैं

किसी भी ज़र्ब से हरगिज़ ख़ता नहीं होंगे
सरों में अपने वो औसान हम भी रखते हैं

किसी के साथ कम-ओ-बेश का अमल न करो
नज़र के सामने मीज़ान हम भी रखते हैं

बस एक तुम ही नहीं 'यास' हक़-परस्तों में
ख़ुदा की ज़ात पे ईमान हम भी रखते हैं


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close