दिलों में घर बनाना आ गया है तुम्हें मिलना मिलाना आ गया है गए हो सीख मुँह पे झूट कहना तुम्हें अब सच छुपाना आ गया है तुम्हारे मुँह में ये शोहरत की हड्डी तुम्हें भी दुम हिलाना आ गया है सुना है शे'र कहने लग पड़े हो तुम्हें मिस्रा लगाना आ गया है पुरानी इक ग़ज़ल का शे'र पढ़ कर तुम्हें महफ़िल उठाना आ गया है नहीं सच की कोई वक़अत यहाँ पर ख़ुदाया क्या ज़माना आ गया है जो अपने फ़र्ज़ से ग़ाफ़िल रहे थे उन्हें अब हक़ जताना आ गया है तुम्हारी मुस्कुराहट कह रही है तुम्हें भी ग़म छुपाना आ गया है उठानी आ गई दीवार तुम को हमें भी दर बनाना आ गया है मिरे लब पर दुआ है रब्ब-ए-ज़िदनी ख़ज़ाना ग़ाएबाना आ गया है 'रज़ी' जी भाड़ में जाए मोहब्बत हमें अब दिल जलाना आ गया है