दिलों पर ये नक़्श उस ने अपना बिठाया कि जो चोट पर सैद आया बिठाया मिसाल-ए-कबूतर मिरे दिल को उस ने भगाया बुलाया उठाया बिठाया तिरे आतिशीं हुस्न ने शम्अ को शब खपाया जलाया गलाया बिठाया उठाया उसी ग़म ने दुनिया से प्यारे कभी तुम ने हम को न तन्हा बिठाया समझ तेरी उल्टी है ऐ जान-ए-आलम कि अपना उठाया पराया बिठाया न बोले लहद में भी हम डर से तेरे फ़रिश्तों ने कितना जगाया बिठाया गया कोठे पर वो ये की मह ने अज़्मत कि उजला बिछौना बिछाया बिठाया ये वो क़ैस है ख़ास शागिर्द मेरा पकड़ कान जिस को उठाया बिठाया 'वक़ार' इस ग़ज़ल की ज़मीं हद बुरी थी बहुत ज़ोर दे कर बिठाया बिठाया