दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो कम न हो इस में ज़रा बल्कि सिवा उस से कहो बात गढ़ कर न कोई बहर-ए-ख़ुदा उस से कहो जितना मैं मुँह से कहूँ मेरा कहा उस से कहो ये न कहियेगा कि हम ज़ख़्मों पे छिड़केंगे नमक जिस किसी ने कि न चक्खा हो मज़ा उस से कहो शाम-ए-अंदोह की शायद कि सहर हो जाए मिरा दिन रात का ये शोर-ओ-बुका उस से कहो चश्म-ए-बीमार ने बीमार किया है मुझ को लब-ए-जाँ-बख़्श करे मेरी दवा उस से कहो हाथ उठा बैठे न वो क़त्ल से मेरे यारो ख़ूँ-बहा मैं ने ब-हल अपना किया उस से कहो इक हसीं पूछता था हाल-ए-वक़ार-ए-ख़स्ता गो बुरा हो मिरा इतना तो भला उस से कहो