दिलों पे ज़ख़्म लगा के हज़ार गुज़री बहार गई है छोड़ के इक यादगार गुज़री बहार मिरे क़रीब जो कोई गुल-ए-बदन महका तो आई याद कोई ख़ुश-गवार गुज़री बहार किसी तरह मुझे पागल न कर सकी वर्ना तिरे बग़ैर भी आई बहार गुज़री बहार हर एक सर्व-ए-रवाँ पर गुमाँ कि जैसे वही हो मेरा माज़ी मिरी यादगार गुज़री बहार मिरे नसीब का नौहा ख़िज़ाँ ये अहद-ए-ख़िज़ाँ तिरे करम का फ़साना बहार गुज़री बहार