दोस्तो तुम ने अजब ये एहतिमाम-ए-ग़म किया क़त्ल सूरज कर दिया फिर रात भर मातम किया याद रखेगी ये दुनिया उस को सदियों दोस्तो जान-ए-बर-हक़ जिस ने दे दी सर न लेकिन ख़म किया कामयाबी किस तरह होती हमें हासिल भला सोचते अक्सर रहे हम काम लेकिन कम किया कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ख़ुद को हम ने दोस्तो बारहा शो'ला किया तो बारहा शबनम किया एक मुद्दत से हमारे दरमियाँ थी दोस्ती उस ने कैसे दुश्मनी का फ़ैसला इक दम किया वहशतें पलने लगीं 'मसऊद' सारे शहर में जब से मिलना आदमी ने आदमी से कम क्या