दिल-रुबा भी वो दिल-नवाज़ भी है और फिर सब से बे-नियाज़ भी है रूह-फ़र्सा है सोज़-ए-इश्क़ मगर मुझ से पूछो तो जाँ-नवाज़ भी है शिकवा-ए-दौर-ए-आसमाँ ही नहीं अपनी क़िस्मत पे मुझ को नाज़ भी है क्या तमाशा है महफ़िल-ए-हस्ती इक हक़ीक़त भी है मजाज़ भी है जो ख़ुदा से भी कह नहीं सकता मेरे दिल में निहाँ वो राज़ भी है कौन पूछे कि हज़रत-ए-'सीमाब' आप वाक़िफ़ हैं कोई 'राज़' भी है